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पछेती आलू

Fasal ki katai kaise karen: हाथ का इस्तेमाल सबसे बेहतर है फसल की कटाई में

Fasal ki katai kaise karen: हाथ का इस्तेमाल सबसे बेहतर है फसल की कटाई में

किसान भाईयों, आपने आलू, खीरा और प्याज की फसल पर अपने जानते खूब मेहनत की। फसल भी अपने हिसाब से बेहद ही उम्दा हुई। गुणवत्ता एक नंबर और क्वांटिटी भी जोरदार। लेकिन, आप अभी भी पुराने जमाने के तौर-तरीके से ही अगर फसल निकाल रहे हैं, उसकी कटाई कर रहे हैं तो ठहरें। हो सकता है, आप जिन प्राचीन विधियों का इस्तेमाल करके फसल निकाल रहे हैं, उसकी कटाई कर रहे हैं, वह आपकी फसल को खराब कर दे। संभव है, आप पूरी फसल न ले पाएं। इसलिए, कृषि वैज्ञानिकों ने जो तौर-तरीके बताएं हैं फसल निकालने के, हम आपसे शेयर कर रहे हैं। इस उम्मीद के साथ कि आप पूरी फसल ले सकें, शानदार फसल ले सकें। तो, थोड़ा गौर से पढ़िए इस लेख को और उसी हिसाब से अपनी फसल निकालिए।

प्याज की फसल

Pyaj ki kheti

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प्याज देश भर में बारहों माह इस्तेमाल होने वाली फसल है। इसकी खेती देश भर में होती है। पूरब से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक। अब आपका फसल तैयार है। आप उसे निकालना चाहते हैं। आपको क्या करना चाहिए, ये हम बताते हैं। जब आप प्याज की फसल निकालने जाएं तो सदैव इस बात का ध्यान रखें कि प्याज और उसके बल्बों को किसी किस्म का नुकसान न हो। आपको बेहद सावधानी बरतनी पड़ेगी। हड़बड़ाएं नहीं। धैर्य से काम लें। सबसे पहले आप प्याज को छूने के पहले जमीन के ऊपर से खींचे या फिर उसकी खुदाऊ करें। बल्बों के चारों तरफ से मिट्टी को धीरे-धीरे हिलाते चलें। फिर जब मिट्टी हिल जाए तब आप प्याज को नीचे, उसकी जड़ से आराम से निकाल लें। आप जब मिट्टी को हिलाते हैं तब जो जड़ें मिट्टी के संपर्क में रहती हैं, वो धीरे-धीरे मिट्टी से अलग हो जाती हैं। तो, आपको इससे साबुत प्याज मिलता है। प्याज निकालने के बाद उसे यूं ही न छोड़ दें। आपके पास जो भी कमरा या कोठरी खाली हो, उसमें प्याज को सुखा दें। कम से कम एक हफ्ते तक। उसके बाद आप प्याज को प्लास्टिक या जूट की बोरियों में रख कर बाजार में बेच सकते हैं या खुद के इस्तेमाल के लिए रख सकते हैं। प्याज को कभी झटके से नहीं उखाड़ना चाहिए।

आलू

aalu ki kheti आलू देश भर में होता है। इसके कई प्रकार हैं। अधिकांश स्थानों पर आलू दो रंगों में मिलते हैं। सफेद और लाल। एक तीसरा रंग भी हैं। धूसर। मटमैला धूसर रंग। इस किस्म के आलू आपको हर कहीं दिख जाएंगे।

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आपका आलू तैयार हो गया। आप उसे निकालेंगे कैसे। कई लोग खुरपी का इस्तेमाल करते हैं। यह नहीं करना चाहिए क्योंकि अनेक बार आधे से ज्यादा आलू खुरपी से कट जाते हैं। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि इसके लिए बांस सबसे बेहतर है, बशर्ते वह नया हो, हरा हो। इससे आप सबसे पहले तो आलू के चारों तरफ की मिट्टी को ढीली कर दें, फिर अपने हाथ से ही आलू निकालें। आप बांस से आलू निकालने की गलती हरगिज न करें। बांस, सिर्फ मिट्टी को साफ करने, हटाने के लिए है।

नए आलू की कटाई

नए आलू छोटे और बेहद नरम होते हैं। इसमें भी आप बांस वाले फार्मूले का इस्तेमाल कर सकते हैं। आलू, मिट्टी के भीतर, कोई 6 ईंच नीचे होते हैं। इसिलए, इस गहराई तक आपका हाथ और बांस ज्यादा मुफीद तरीके से जा सकता है। बेहतर यही हो कि आप हाथ का इस्तेमाल कर मिट्टी को हटाएं और आलू को निकाल लें।

गाजर

gajar ki kheti गाजर बारहों मास नहीं मिलता है। जनवरी से मार्च तक इनकी आवक होती है। बिजाई के 90 से 100 दिनों के भीतर गाजर तैयार हो जाता है। इसकी कटाई हाथों से सबसे बेहतर होती है। इसे आप ऊपर से पकड़ कर खींच सकते हैं। इसकी जड़ें मिट्टी से जुड़ी होती हैं। बेहतर तो यह होता कि आप पहले हाथ अथवा बांस की सहायता से मिट्टी को ढीली कर देते या हटा देते और उसके बाद गाजर को आसानी से खींच लेते। गाजर को आप जब उखाड़ लेते हैं तो उसके पत्तों को तोड़ कर अलग कर लेते हैं और फिर समस्त गाजर को पानी में बढ़िया से धोकर सुखा लिया जाता है।

खीरा

khira ki kheti खीरा एक ऐसी पौधा है जो बिजाई के 45 से 50 दिनों में ही तैयार हो जाता है। यह लत्तर में होता है। इसकी कटाई के लिए चाकू का इस्तेमाल सबसे बेहतर होता है। खीरा का लत्तर कई बार आपकी हथेलियों को भी नुकसान पहुंचा सकता है। बेहतर यह हो कि आप इसे लत्तर से अलग करने के लिए चाकू का ही इस्तेमाल करें।

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कुल मिलाकर, फरवरी माह या उसके पहले अथवा उसके बाद, अनेक ऐसी फसलें होती हैं जिनकी पैदावार कई बार रिकार्डतोड़ होती है। इनमें से गेहूं और धान को अलग कर दें तो जो सब्जियां हैं, उनकी कटाई में दिमाग का इस्तेमाल बहुत ज्यादा करना पड़ता है। आपको धैर्य बना कर रखना पड़ता है और अत्यंत ही सावधानीपूर्वक तरीके से फसल को जमीन से अलग करना होता है। इसमें आप अगर हड़बड़ा गए तो अच्छी-खासी फसल खराब हो जाएगी। जहां बड़े जोत में ये वेजिटेबल्स उगाई जाती हैं, वहां मजदूर रख कर फसल निकलवानी चाहिए। बेशक मजदूरों को दो पैसे ज्यादा देने होंगे पर फसल भी पूरी की पूरी आएगी, इसे जरूर समझें। कोई जरूरी नहीं कि एक दिन में ही सारी फसल निकल आए। आप उसमें कई दिन ले सकते हैं पर जो भी फसल निकले, वह साबुत निकले। साबुत फसल ही आप खुद भी खाएंगे और अगर आप उसे बाजार अथवा मंडी में बेचेंगे, तो उसकी कीमत आपको शानदार मिलेगी। इसलिए बहुत जरूरी है कि खुद से लग कर और अगर फसल ज्यादा है तो लोगों को लगाकर ही फसलों को बाहर निकालना चाहिए। (देश के जाने-माने कृषि वैज्ञानिकों की राय पर आधारित)
आलू की पछेती झुलसा बीमारी एवं उनका प्रबंधन

आलू की पछेती झुलसा बीमारी एवं उनका प्रबंधन

मनोज कुमार1, मेही लाल1, एव संजीव शर्मा2 
1आई सी ए आर-केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान क्षेत्रीय केंद्र, मोदीपुरम, मेरठ
2आई सी ए आर- केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान,शिमला, हिमाचल प्रदेश
आलू भारतवर्ष की एक प्रमुख सब्जी की फसल है। इस फसल का उत्पादन भारत में लगभग 53.0 मिलियन टन, 2.25 मिलियन हेक्टयर क्षेत्र से होता है। आलू की फसल मे बीमारी मुख्तया कवक, बीजाणु, विषाणु, नेमटोड आदि के द्वारा होती है। पछेती झुलसा बीमारी फाइटोफ्थोरा इन्फेस्टान्स नामक फफूंद जैसे जीव द्वारा होती है। पछेती झुलसा का अतिक्रमण आयरलैंड में 1845-1846 के बीच हुआ था, जो इतिहास में आयरिश फेमीन के नाम से जानी जाती है, जिसके फलस्वरूप 2 मिलियन जनसंख्या मर गयी थी और 1.2 मिलियन जनसंख्या दूसरे देश में पलायन कर गये थे।

आलू की पछेती झुलसा रोग एवं उपाय

भारत में इस रोग का आगमन 1870-1880 के बीच नीलगिरी पहाड़ी पर हुआ था, तदुपरांत यह बीमारी लगभग सभी आलू उत्पादन करने वाले क्षेत्र में कम या ज्यादा तीव्र रूप में दिखती रहती है और ज्यादा तीव्र होने पर लगभग 75 प्रतिशत तक उपज में कमी आ जाती है, यद्यपि यह उगायी जाने वाली किस्म विशेष, अपनाये गये फसल सुरक्षा उपायों, एवं रोग की तीव्रता पर निर्भर करता है। यदि मौसम बीमारी के बहुत ही अनुकूल है, तो बीमारी पूरे खेत को 3-5 दिनों मे बहुत ज्यादा नुकसान कर देती और किसान की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव डालती है। आजकल विशेष रूप से उतर भारत मे वर्षा एक दिन के अंतराल या लगातार हो रही है, और आगे आने वाले दिनों मे भी वर्षा होने का पूर्वानुमान मौसम विभाग दवारा लगाया जा रहा है। साथ ही साथ वर्षा के कारण वातावरण का पछेती झुलसा के अनुकूल बन रहा है। इस अवस्था मे पछेती झुलसा आने की संभावना और अधिक बढ़ जाती है। अत: किसानो एव आलू उत्पादको को इस समय और अधिक
आलू की खेत की निगरानी बढ़ा देनी चाहिए।

बीमारी के लक्षणः

इस बीमारी के लक्षण पत्तियो, तनो एवं कन्दो पर दिखाई देते है। पत्तियों पर छोटे, हल्के पीले-हरे अनियमित धब्बे दिखाई देते हैं। शुरू में ये धब्बे पत्तियों के सिरे तथा किनारों पर पाये जाते हैं। जो शीघ्र ही बढ़कर बड़े गीले धब्बे बन जाते हैं। बाद में पत्तियों की निचली सतह पर धब्बों के चारों ओर रूई सी बारीक सफेद फफूंद दिखाई देती है। मौसम में आर्द्रता की कमी होने पर पत्तियों का गीला भाग सूखकर भूरे रंग का हो जाता है। डण्ठलों पर बीमारी के प्रकोप होने पर हल्के भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं, जो बाद में लम्बाई में बढ़कर डण्ठल के चारों ओर फैल जाते हैं। पिछेता झुलसा बीमारी से प्रभावित कन्दों पर छिछला, लाल-भूरे रंग का शुष्क गलन देखा जा सकता है, जो असंयमित रूप में कन्द की सतह से कन्द के गूदे में पहुंच जाता है। इससे प्रभावित हिस्से सख्त हो जाते हैं तथा कन्द का गूदा बदरंग हो जाता है।

झुलसा बीमारी के प्रकट होने के लिये मौसम:

इस बीमारी का प्रकट होना एवं फैलाव पूरी तरह मौसम की अनुकूलता पर निर्भर करता है। यदि वातावरण का तापमान 10 से 20 डिग्री सेल्सियस, सापेक्षिक नमी 85 प्रतिशत से अधिक हो, बादल छाये हो, हल्की एवं रूक-रूक कर वर्षा हो रही हो साथ ही कोहरा छाया रहे तो समझना चाहिये कि बीमारी प्रकट होने की सम्भावना है।

बीमारी का फैलावः

मैदानी इलाकों के शीतगृहों में भंडारित रोगी कन्दों पर रोग कारक जीवित रहते हैं जो ग्रसित बीज कन्दों द्वारा स्वस्थ पौधे पर अनूकूल मौसम आते ही बीमारी के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। बीमारी के लक्षण डण्ठल के निचले भाग और निचली पत्तियों पर सर्वप्रथम प्रकट होते हैं। रोगकारक के बीजाणु हवा अथवा वर्षा के जल/सिचाई द्वारा एक पौधे से दूसरे पौधे या एक खेत से दूसरे खेत तक पहुंच जाते हैं। ये भी पढ़े: इस तरह करें अगेती आलू की खेती

प्रबन्धनः

आई सी ए आर- केन्द्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सी.पी.आर.आई.) द्वारा 2000 में पछेती झुलसा के पूर्वानुमान के लिए “झुल्साकास्ट” नामक मॉडल विकसित किया गया था, जो कि केवल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए था। बाद में इसी को आधार रखते हुए पंजाब, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल के लिए भी मॉडल बनाये गए। लेकिन ये सभी मॉडल क्षेत्रिय आधार पर है। वर्ष 2013 में सी०पी०आर०आई द्वारा “इंडोब्लटकास्ट” नामक मॉडल विकसित किया गया है जो पूरे भारतवर्ष में कार्य कर रह है। इससे आलू उत्पादक व किसान को समय -समय पर बीमारी आने से पहले सूचना मिल जाती है और वे समयानुसार उचित प्रबंधन कर सकते है।

बीमारी के प्रकोप से बचने हेतु सावधानियां:

सदैव रोग मुक्त स्वस्थ बीज आलू का ही प्रयोग करे और इसकी बीजाई का कार्य अक्टूबर माह में पूरा कर लें। गूलों को उंचा बनायें ताकि कन्द मिट्टी से अच्छी तरह ढ़के रहे ताकि फफूंद कन्दां तक न पहुंच पाये। आकाश में बादल छाये हों तो सिंचाई बन्द कर दें। साथ ही रोगरोधी किस्मों की बीजाई करें। जैसे ही आस-पास के क्षेत्रों में बीमारी आने की सूचना प्राप्त हो तो मैन्कोजैब/प्रोपीनेब/क्लारोथैलोनील युक्त फफूदनाशक दवा 0.2 प्रतिशत का सुरक्षात्मक छिड़काव करने की व्यवस्था करें ताकि आपके खेतों में बीमारी का प्रकोप न हो सके। यदि 85 प्रतिशत से अधिक संक्रमण हो जाये तो डण्ठलों की कटाई् कर दे ताकि कन्दों में संक्रमण न होने पाये। यह भी सावधानी रखनी चाहिए है कि आलू की खुदाई पश्चात ढेर की छंटाई करते समय पछेती झुलसा बीमारी से ग्रसित कन्दों की छंटाई करके उन्हें गड्ढों में दबा दें इससे शीत भण्डार में रखें जाने वाले आलू बीज कन्द बीमारी से मुक्त रहेंगे तथा बीज की शुद्धता बनी रहेगी।

बीमारी के प्रति रोगरोधी किस्मेः

देश के अलग-अलग क्षेत्रों में उगाने हेतु पछेती झुलसा रोग के प्रति रोगरोधी किस्में विकसित की जा चुकी हैं। मैदानी क्षेत्रों हेतु रोग रोधी किस्मों में कुफरी बादशाह, कुफरी ज्योती, कुफरी सतलज, कुफरी गरिमा, कुफ़री मोहन, कुफरी ख्याति, कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी चिप्सोना-2, कुफरी चिप्सोना-3 कुफरी चिप्सोना-4,एवं कुफ़री फ्राईओम प्रमुख किस्में हैं। हिमाचल एवं उत्तराखंड की पहाड़ियों हेतु कुफरी शैलजा, कुफरी हिमालनी, कुफ़री कर्ण एंव कुफरी गिरधारी और नीलगिरी की पहाड़ियों हेतु कुफरी स्वर्णा, कुफरी थैन्मलाई एवं कुफ़री सहादरी। दार्जलिंग की पहाड़ियों हेतु कुफरी कंचन और खासी पहाड़ियों हेतु कुफरी मेघा, कुफरी हिमालनी तथा कुफरी गिरधारी प्रमुख रोगरोधी किस्में हैं। ये भी पढ़े: सर्दी में पाला, शीतलहर व ओलावृष्टि से ऐसे बचाएं गेहूं की फसल

बीमारी से फसल को बचाने के लिये फफूंदनाशक दवा का छिड़कावः

पछेती झुलसा प्रबंधन हेतु लगभग २5 फफूंदनाशक केन्द्रीय इन्सेक्टीसाइड बोर्ड एव रेजिस्ट्रेशन कमेटी  के तहत रेजिस्टर्ड है, परंतु कुछ ही उनमे से प्रयोग हेतु लाये जाते है। इन फफूंदनाशक को एक हेक्टयर छिड़काव हेतु 500-1000 ली पानी की आवश्यकता पडती है, और यह फसल की अवस्था एवं छिड़काव किए जाने वाले यंत्र पर निर्भर करता है। पिछेता झुलसा प्रबंधन हेतु सुरक्षात्मक छिड़काव सही समय पर सही मात्रा में बहुत ही आवश्यक है। कभी- कभी देखा जाता है, कि किसान भाई दो दवाए जो अलग-अलग समय पर छिड़की जाती है। एक ही साथ मिलाकर छिड़काव कर देते है, बिना बीमारी के एंटिबयोटिक्स जैसी दवाओ का छिड़काव करते है, जो कि उचित नहीं है। जैसे ही पछेती झुलसा रोग के आगमन के लिये अनुकूल मौसम हो जाये तो मैनकोजैब/प्रोपीनेब/क्लोरोथलोनील युक्त (0.2 प्रतिशत) फफूंदनाशक रसायन का सुरक्षात्मक छिडकाव करें। इसके उपरान्त भी अगर मौसम में परिवर्तन न हो या बीमारी के फैलाव की आशंका का हो तो डाईमेथोमोर्फ़+मैंकोजैब 0.3 प्रतिशत या साइमोक्सनिल युक्त (0.3 प्रतिशत) फफूंदनाशक का छिड़काव करें। यदि आवश्यकता हो तो ऊपर बताये गये फफूंदनाशकों का पुनः 7 से 15 दिन के अन्तराल पर छिड़काव दोहरायें।

फफूंदनाशकों का छिड़काव करते समय सावधानियां:

बीमारी की रोकथाम हेतु फफूंदनाशकों का छिड़काव करते समय किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि छिड़काव करते समय मुंह पर आवरण (मास्क) तथा घोल बनाते समय हाथ में रबड के दस्तानें होने चाहिए। छिड़काव पौधे की पत्तियों की निचली एवं ऊपरी दोनों सतहों पर ठीक प्रकार से करें। वर्षा होने की आशंका होने पर फफूंदनाशकों के घोल में स्टिकर (चिपकाने वाले पदार्थ) 0.1 प्रतिशत का प्रयोग करे । ऐसा करने से किया गया छिड़काव अधिक प्रभावी होगा। pacheti aloo rog 1                                  pacheti aloo rog पछेती झुलसा ग्रसित खेत                         पती के पिछले सतह पर पिछेता झुलसा के लक्षण pacheti aloo 1       pacheti aloo पछेती झुलसा से ग्रसित डण्ठल                             पछेती झुलसा से ग्रसित कंद